शिव – जलन्धर युद्ध तथा जलन्धर का वध
जलन्धर नामक एक दैत्य था। उसने तपस्या से बहुत बल प्राप्त किया। उसने यक्ष, गंधर्व, उरक, दैव, दानव सभी को जीत लिया। ब्रह्मा को भी जीत लिया। फिर भगवान विष्णु को जीतने के लिए लगातार उनके साथ युद्ध किया। बाद में उसने विष्णु को भी जीत लिया। जलन्धर भगवान विष्णु को जीतकर राक्षसों से बोला – मैंने विष्णु को भी युद्ध में जीत लिया है अब केवल शंकर बाकी है। शंकर को उसके गणों के साथ और नन्दी के साथ क्षण मात्र में जीतकर मैं ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र को तुम्हारे लिए प्रदान कर दूंगा । जलन्धर की ऐसी बात सुनकर राक्षस जोर – जोर से जलन्धर की जय जयकार करने लगे। फिर जलन्धर दैत्यों के साथ रथ, घोड़ा, हाथी को लेकर शिव जी के पास गया।
राक्षसों का नाश करने वाले भगवान शिव ने इसको अवश्य सुन रखा था। ब्रह्मा के वचनों की रक्षा करते हुए शम्भू, पार्वती और नंदी आदि गणो के सामने हंसते हुए कहने लगे कि मुझको अब क्या करना चाहिए। इतने में ही जलन्धर भगवान शिव के सामने आ गया और उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगा। तब महादेव बोल – हे दैत्यराज! मेरे वाणों से छिन्न मस्तक होकर तू मृत्यु को प्राप्त होगा। जलन्धर शिव जी की बात सुनकर बोला – हे वृषभध्वज! ऐसी बातों से क्या लाभ, चंद्रमा के समान चमकते हुए शस्त्रों से लड़ने के लिए यहां आया हूं। यह सुनकर रूद्र ने पैर के अंगूठे से जल ही जल कर दिया और हंसते हुए बोले – कि मेरे पैर के द्वारा बने इस महासमुद्र में से यदि तू बाहर निकल आवे तो मेरे साथ युद्ध में समर्थ हो सकता है अन्यथा नहीं। जलन्धर हंसता हुआ बोल – हे शंकर! तुझे गदा के द्वारा और देवताओं सहित इंद्र को मारकर मैं चराचर को हनन कर सकता हूं। जिस प्रकार सर्प के बच्चे को गरुड़ मार डालता है। हे शंकर! ऐसा कौन है जिसका मेरे वाणों से छेदन न किया गया हो। मैंने बालकपन में तपस्या से ब्रह्मा को जीत लिया। यौवन में देवता और ऋषि मुनियों को। तपस्या के बल से मैंने तीनों लोको को क्षण मात्र में जला दिया। हे रुद्र! मैने विष्णु को भी जीत लिया। इंद्र, अग्नि, वरुण, कुबेर आदि देवता मेरी गंध को भी नहीं सह सकते।
पृथ्वी और आकाश में मेरी सब जगह भुजाएं फैली हुई है। उनकी खुजली मिटाने के लिए मन्दराचल आदि पर्वतों को हिला डाला। गंगा को भी रोक दिया। एरावत गज को भी समुद्र में फेंक डाला। ब्रह्मा का मुख भी उल्टा कर दिया। रथ सहित इंद्र को भी सौ योजन दूर फेंक दिया। गरुण को नागपाश में बांध दिया। उर्वशी आदि अप्सराओं को भी कारागार में बंद कर दिया। जैसे तैसे इंद्र ने प्रार्थना करके और शरण में आकर अपनी एक पत्नी को मेरे से प्राप्त कर लिया। सो हे रुद्र! तू मुझे नहीं जानता।
ऐसा कहने पर महादेव ने अपनी तीसरी नेत्र की अग्नि से उसका रथ भस्म कर दिया और दृष्टि मात्र से राक्षसों के रथ, घोड़े, हाथी आदि को जला दिया। वह दैत्य चलायमान नही हुआ और मरे हुए बान्धवों का सोच भी नहीं किया। वह सुदर्शन चक्र से रूद्र को मारने के लिए तैयार हुआ। सुदर्शन चक्र को चलाने के लिए जैसे ही उसने अपने कंधे पर रखा तैसे ही सिर से लेकर पैरों तक दो भाग में कटकर पृथ्वी पर गिर गया। जैसे वज्र से कटा हुआ पर्वत गिर गया हो । उसके रक्त से संपूर्ण जगत व्याप्त हो गया और रुद्र के नियोग से उसका मांस भी रक्त हो गया। वही रक्त नरक को प्राप्त हो रक्त का कुंड बन गया। जलन्धर को मरा देखकर सभी देवता, किन्नर, यक्ष आदि हर्ष से गर्जना करने लगे। और महादेव की जय जयकार करने लगे।