
जब रामजी अयोध्या छोड़कर बैकुंठ जाने लगे। तब सारे नगर वासी उनके पीछे-पीछे आ गए और कहा- प्रभु! आप जहां जाओगे हमें भी वहां साथ ले चलो। सारे नगर वासी राम जी से विनती करने लगे। तब राम जी ने सबको कहा- ठीक है आप सभी मेरे साथ बैकुंठ चलिए। राम जी ने सभी के लिए विमान बुलाया। सभी अपने विमान पर बैठने लगे तब राम जी ने हनुमान जी से कहा – हनुमान! देखकर आओ कहीं कोई अयोध्यावासी रह तो नहीं गया।
हनुमान जी प्रभु की आज्ञा का पालन करने के लिए पूरी अयोध्या में चक्कर लगाने लगे। तभी उन्हें एक आदमी दिखा। हनुमान जी उसके पास गए और उससे पूछा सारे नगर वासी तो प्रभु राम जी के साथ बैकुंठ जा रहे हैं तुम यहां क्या कर रहे हो? तब वह आदमी हनुमान जी के चरणों में गिर गया और बोला प्रभु मैं वही पापी हूं जिसने माता सीता पर आरोप लगाया था। सारे नगर वासी ने मुझे उनके साथ चलने से मना कर दिया क्योंकि मैंने उनकी माता स्वरूप सीता जी पर आरोप लगाया था। किसी भी नगर वासी ने मुझे क्षमा नहीं किया तो प्रभु श्री राम मुझे कैसे क्षमा करेंगे। हनुमान जी ने कहा – इस प्रश्न का उत्तर तो श्री राम ही दे सकते हैं वे दया के सागर हैं तुम उनसे क्षमा याचना करो।
ऐसा कहकर हनुमान जी उस धोबी को श्री राम जी के पास ले आए। हनुमान जी ने श्री राम से कहा – प्रभु! यह एक आदमी रह गया था। तब प्रभु ने बैकुंठ से उसके लिए एक विमान बुलाया लेकिन विमान नहीं आया। यह देखकर धोबी श्री राम जी के चरणों में गिर गया और प्रभु से क्षमा याचना करने लगा और साथ ले जाने की विनती करता रहा। तब प्रभु ने कहा- मैंने तो तुम्हें कब का क्षमा कर दिया है। मैंने सभी के लिए विमान बुलाया और तुम्हारे लिए भी विमान बुलाया लेकिन विमान नहीं आया, किंतु तुम चिंता ना करो तुम हमारे साथ हमारे विमान में चलो। इतना कहकर श्री राम ने उस धोबी को अपने विमान पर बिठा लिया और बैकुंठ की ओर चल दिए।
बैकुंठ पहुंचते ही बैकुंठ के दरवाजे खुले और सारे नगर वासियों के विमान बैकुंठ के अंदर गए परंतु श्री राम का विमान अंदर ना जा सका और बैकुंठ के दरवाजे बंद हो गए। श्री राम ने बैकुंठ के दरवाजे खोलने का आदेश दिया परंतु वहां के द्वारपालों ने श्री राम को कहा – प्रभु! क्षमा करें हम आपका विमान अंदर नहीं जाने देंगे क्योंकि इसमें एक अपराधी है जिसे हम बैकुंठ के अंदर प्रवेश नहीं दे सकते, क्योंकि इसने हमारी माता सीता का अपमान किया था और माता का अपमान अर्थात गुरु का अपमान होता है और गुरु का अपमान करने वाला बैकुंठ में नहीं रह सकता। तब प्रभु ने कहा- कोई बात नहीं, तुम स्वर्ग लोक चले जाओ। लेकिन वहां पर भी इंद्र ने स्वर्ग में प्रवेश देने से मना कर दिया। प्रभु ने फिर उसे कहा – तुम ब्रह्मलोक चले जाओ परन्तु वहां पर भी ब्रह्मा जी ने प्रवेश देने से मना कर दिया। फिर श्री राम ने उसे कैलाश ले गए और शिवजी से कहने लगे – प्रभु! आप तो कैलाश में भूत पिशाच को भी शरण देते हैं तो इसे भी शरण दे दीजिए। तब शिव जी ने कहा – मैं भूत पिशाच और सभी अन्य प्राणियों को कैलाश में शरण देता हूं लेकिन देवी लक्ष्मीस्वरुप सीता जी जो माता स्वरूप पूरे जगत की गुरु हैं, उनका अपमान करने वाले किसी भी व्यक्ति का कैलाश में कोई स्थान नहीं। श्री राम ने उससे कहा सब जगह तो तुम्हारा प्रवेश निषेध है तो तुम एक काम करो तुम नरक ही चले जाओ लेकिन तुम चिंता नहीं करो मैं यमराज को कह दूंगा कि तुम्हें किसी भी तरह की पीड़ा ना दे। ऐसा कहकर प्रभु ने उसे यमलोक ले आये लेकिन वहां पर भी यमराज जी ने उसे प्रवेश देने से मना कर दिया और कहा कि प्रभु यहां पापियों का स्थान है लेकिन जिसने जगत जननी माता जिनको प्रथम गुरु कहा गया है, उनका अपमान करने वाले किसी भी व्यक्ति को मैं नर्क में भी शरण नहीं दूंगा।
इस कथा का यह सार है की जो भी मनुष्य अपने गुरु का अपमान करता है, उसे ब्रमांड के किसी भी लोक में शरण नहीं मिलता है। यहां तक कि नर्क लोक में भी शरण नहीं मिलता।