आपने कृष्ण भक्त मीरा के बारे में तो सुना ही होगा, जो भगवान कृष्ण को अपना पति मानती थी। वैसे ही एक महादेव की भक्त थी। जिसे महादेवी अक्का के नाम से जाना जाता है। जो भगवान शिव का स्वरूप “चन्नमल्लिकार्जुन” (श्री शिव) को अपना पति मानती थी और उन्होंने उनकी भक्ति के लिए सभी सांसारिक बंधनों का त्याग कर दिया था। यहाँ तक उन्होंने अपने वस्त्रों का त्याग कर दिया और अपने केशों से अपने शरीर को ढकती थी।
प्रस्तावना
भारतीय भक्ति परंपरा में अनेक संत और भक्त हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन और तपस्या के द्वारा समाज को दिशा दी। इनमें से एक महान संत थीं महादेवी अक्का (Akka Mahadevi), जिन्हें कन्नड़ भाषा की महान संत कवयित्री और वीरशैव संत परंपरा की प्रमुख साधिका माना जाता है। 12वीं शताब्दी में जन्मी महादेवी अक्का ने अपने जीवन को पूरी तरह भगवान शिव की भक्ति में समर्पित कर दिया। उन्होंने सांसारिक बंधनों और सामाजिक रूढ़ियों को त्याग कर केवल अपने आराध्य “चन्नमल्लिकार्जुन” (श्री शिव) की उपासना की।
उनकी रचनाएँ न केवल भक्ति साहित्य का अनुपम उदाहरण हैं बल्कि महिलाओं की स्वतंत्रता, आध्यात्मिक समर्पण और ईश्वर-प्रेम का सशक्त स्वर भी हैं।
महादेवी अक्का का जन्म और बाल्यकाल
महादेवी अक्का का जन्म 12वीं शताब्दी में कर्नाटक राज्य के उत्तरा कन्नड़ जिले के पास एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन से ही उनका झुकाव अध्यात्म और भक्ति की ओर था। कहा जाता है कि छोटी उम्र से ही वे भगवान शिव को अपने पति मानकर पूजा करती थीं।
वे भगवान को “चन्नमल्लिकार्जुन” नाम से पुकारती थीं, जिसका अर्थ है – “सुंदर, सफेद चमेली के फूल जैसे शुद्ध और कोमल भगवान शिव।”
सांसारिक जीवन का त्याग
यद्यपि उनका विवाह मदिवाले नामक राजा से हुआ था, लेकिन महादेवी अक्का ने सांसारिक जीवन और राजसी सुखों को अस्वीकार कर दिया। उनका मानना था कि उनके वास्तविक पति केवल भगवान शिव हैं।
जब उनके पति ने उन पर सांसारिक अधिकार जताने की कोशिश की, तो उन्होंने अपने पति को मना कर दिया और कहा कि मेरा तो केवल एक ही पति है और वो है “चन्नमल्लिकार्जुन”(भगवान शिव)।
जब उनके पति को लगा की यह तो मुझे नहीं किसी और को अपना पति मानती है तब उनके पति ने क्रोध में आकर भरी सभा में महादेवी का अपमान किया और कहा कि तुम जो यहाँ मेरे महल में सुख सुविधा भोग रही हो वो मेरा है। तो महादेवी ने राजा से कहा – मैं अभी इन सभी चीज़ों का त्याग करती हूँ। यह सुनकर राजा और क्रोध में आकर बोला – जो तुमने यह वस्त्र पहने हुए है वो भी मेरे है तो महादेवी ने उन वस्त्रों का भी त्याग कर दिया।
और महादेवी अक्का ने विवाह, परिवार और समाज की सारी परंपराओं को तोड़ते हुए अपना घर छोड़ दिया। वे नग्न अवस्था में केवल अपने लंबे केशों से ढककर, संपूर्ण रूप से भक्ति मार्ग पर निकल पड़ीं।
यह त्याग उनके अदम्य साहस और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण को दर्शाता है।
आध्यात्मिक साधना
महादेवी अक्का ने अपना जीवन कर्नाटक के अनुभव मंटप (एक प्रकार का आध्यात्मिक चर्चा केंद्र, जिसकी स्थापना बसवन्ना ने की थी) में बिताया। यहाँ वे अन्य संतों – बसवन्ना, अल्लामा प्रभु और चन्नबसवन्ना के साथ भक्ति और अध्यात्म पर चर्चा करती थीं।
उन्होंने अपनी साधना के दौरान शरीर और मन को पूर्णतः ईश्वर की भक्ति में विलीन कर दिया। वे मानती थीं कि
सच्चा वैराग्य वही है जब मन में केवल भगवान का वास हो।
सांसारिक वस्त्र, आभूषण और मान-सम्मान क्षणिक हैं।
ईश्वर ही जीवन का वास्तविक धन है।
महादेवी अक्का की वचनावली (रचनाएँ)
महादेवी अक्का की रचनाओं को “वचन” कहा जाता है। ये छोटी-छोटी कविताएँ हैं, जिनमें उन्होंने भगवान शिव के प्रति अपने प्रेम, विरह और समर्पण की भावनाओं को व्यक्त किया है।
उनकी कविताओं की विशेषताएँ:
सरल, सहज और गहरी आध्यात्मिक भाषा।
ईश्वर को पति और स्वयं को दुल्हन मानने की भावनात्मक अभिव्यक्ति।
सांसारिक मोह-माया और सामाजिक बंधनों से मुक्त जीवन का संदेश।
महिला स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान का स्वर।
उनके वचनों में स्त्री-स्वतंत्रता की झलक भी मिलती है। उन्होंने कहा था कि – “संसार का सारा आडंबर मुझे व्यर्थ लगता है, जब तक मैं अपने प्रभु चन्नमल्लिकार्जुन को प्राप्त नहीं कर लेती।”
महिला स्वतंत्रता की अग्रदूत
महादेवी अक्का केवल एक संत या कवयित्री ही नहीं थीं, बल्कि वे महिलाओं के लिए प्रेरणा का महान स्रोत भी हैं। उस समय समाज में महिलाओं पर अनेक बंधन थे, परंतु अक्का ने उन्हें तोड़कर दिखाया कि स्त्री भी अपने अधिकारों और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए स्वतंत्र है।
उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया कि –
स्त्री केवल किसी की पत्नी या पुत्री नहीं है, बल्कि वह स्वयं एक स्वतंत्र आत्मा है।
ईश्वर की कृपा पाने में स्त्री-पुरुष का कोई भेद नहीं है।
समाज के नियम अगर ईश्वर-भक्ति में बाधा डालें तो उन्हें तोड़ देना चाहिए।
महादेवी अक्का का अंतिम जीवन
कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम चरण में महादेवी अक्का जंगलों और पहाड़ों में भटकते हुए तपस्या करती रहीं। वे केवल ईश्वर की साधना और ध्यान में लीन रहती थीं।
लोककथाओं के अनुसार, उन्होंने अंततः श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश) में भगवान चन्नमल्लिकार्जुन के चरणों में लीन होकर अपना जीवन पूर्ण किया।
महादेवी अक्का का योगदान और महत्व
- भक्ति साहित्य की समृद्धि – अक्का की रचनाएँ कन्नड़ भाषा के भक्ति साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।
- महिला चेतना की आवाज़ – उन्होंने स्त्रियों को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र सोच की प्रेरणा दी।
- सामाजिक सुधार – उन्होंने रूढ़ियों और आडंबरों को तोड़ा।
- ईश्वर प्रेम का आदर्श – उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम और भक्ति सांसारिक संबंधों से परे है।
आज के समय में प्रासंगिकता
आज भी महादेवी अक्का की शिक्षा प्रासंगिक है। जब समाज भौतिकता और दिखावे में उलझा हुआ है, तब उनका संदेश हमें भीतर झाँककर आत्मिक शांति पाने की ओर प्रेरित करता है।
वे हमें सिखाती हैं कि आत्मा की पवित्रता ही सबसे बड़ा आभूषण है।
जीवन का उद्देश्य केवल धन-संपत्ति जुटाना नहीं, बल्कि ईश्वर के साथ एकाकार होना है।
महिलाओं के लिए उनका जीवन यह प्रमाण है कि दृढ़ संकल्प और साहस से कोई भी अपने मार्ग पर आगे बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
महादेवी अक्का भारतीय भक्ति परंपरा की अद्भुत हस्ती हैं। उन्होंने न केवल भगवान शिव की भक्ति में अपने जीवन को समर्पित किया, बल्कि समाज को भी सिखाया कि सच्ची स्वतंत्रता आत्मा की स्वतंत्रता है। उनकी वचनावली आज भी हमें यह प्रेरणा देती है कि ईश्वर-प्रेम में कोई बंधन, कोई जाति और कोई लिंग बाधक नहीं हो सकता।
अक्का महादेवी का जीवन हमें यही संदेश देता है कि जब भक्ति सच्ची होती है तो वह सामाजिक बंधनों को तोड़कर आत्मा को ईश्वर से मिला देती है।