परिचय
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को जगत के पालनहार और धर्म की रक्षा करने वाले देवता के रूप में जाना जाता है। जब-जब संसार में अधर्म, अन्याय और अहंकार का बढ़ना होता है, तब-तब भगवान विष्णु अवतार धारण करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं। विष्णु के दस प्रमुख अवतार (दशावतार) में पाँचवाँ अवतार है वामन अवतार।
वामन अवतार का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि दार्शनिक दृष्टि से भी अत्यधिक है। यह अवतार हमें यह सिखाता है कि भक्ति, विनम्रता और दान की भावना मनुष्य को महान बनाती है, जबकि अहंकार पतन का कारण बनता है।
असुरराज बलि का साम्राज्य
त्रेतायुग में असुरराज बलि, जो कि प्रह्लाद का पौत्र था, उस ने अपनी वीरता, पराक्रम और दानशीलता के बल पर तीनों लोकों पर शासन करना शुरू कर दिया।
बलि ने देवताओं को परास्त करके स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया।
पृथ्वी और पाताल लोक भी उसके अधीन हो गए।
बलि अत्यंत धार्मिक और दानवीर थे, परंतु उनकी शक्ति और साम्राज्य के कारण देवताओं का अस्तित्व संकट में पड़ गया।
देवता अपने स्वर्गलोक से वंचित होकर विचलित हो उठे और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे धर्म की रक्षा के लिए कुछ करें।
अदिति और कश्यप की तपस्या
देवमाता अदिति, जो सभी देवताओं की माता थीं, उन्होंने अपने पुत्र इंद्र और अन्य देवताओं को असुरराज बलि से पराजित देखकर गहरी तपस्या की।
उन्होंने अपने पति ऋषि कश्यप के साथ मिलकर भगवान विष्णु की कठोर साधना की।
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र रूप में अवतरित होंगे और देवताओं का स्वर्गलोक वापस दिलाएंगे।
वामन अवतार का जन्म
ऋषि कश्यप और माता अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन (बौने ब्राह्मण) के रूप में जन्म लिया।
वे बालक रूप में अत्यंत तेजस्वी, दिव्य और आकर्षक थे।
हाथ में छड़ी, कमंडलु और छाता लिए हुए वामन ब्राह्मण रूप से विद्वानों जैसे प्रतीत होते थे।
उनका स्वरूप छोटा था लेकिन तेज इतना था कि उन्हें देखते ही सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की।
असुरराज बलि का यज्ञ
उसी समय असुरराज बलि एक भव्य अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद बलि समस्त ब्राह्मणों और ऋषियों को दान देने की प्रतिज्ञा कर चुके थे।
वामन, ब्राह्मण बालक के वेश में यज्ञशाला में पहुँचे। उनका दिव्य रूप देखकर बलि ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया और दान देने का वचन दिया।
तीन पग भूमि का दान
बलि ने वामन से पूछा –
“हे ब्राह्मण कुमार! आप कौन हैं और मुझसे क्या चाहते हैं?”
वामन ने विनम्रता से उत्तर दिया –
“मुझे किसी धन, राज्य या स्वर्ण की आवश्यकता नहीं है। आपसे केवल तीन पग भूमि चाहता हूँ, जहाँ मैं अपने कदम रख सकूँ।”
बलि यह सुनकर मुस्कुराए और बोले –
“तुम इतने छोटे से ब्राह्मण हो और केवल तीन पग भूमि चाहते हो? मैं तो तुम्हें पूरा राज्य दे सकता हूँ।”
लेकिन वामन ने दृढ़ होकर कहा –
“मुझे केवल तीन पग भूमि ही चाहिए।”
बलि ने सहर्ष यह दान स्वीकार कर लिया और अपने गुरु शुक्राचार्य की चेतावनी को भी अनसुना कर दिया।
वामन का विराट रूप
जैसे ही बलि ने वचन दिया, वामन ने अपना बौना रूप त्याग दिया और विराट त्रिविक्रम रूप धारण कर लिया।
पहले पग में उन्होंने पूरी पृथ्वी नाप ली।
दूसरे पग में उन्होंने आकाश और स्वर्गलोक को माप लिया।
अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा।
बलि की भक्ति और समर्पण
भगवान विष्णु ने बलि से कहा –
“अब बताओ, तीसरा पग कहाँ रखूँ?”
तब बलि ने बिना संकोच अपना सिर झुका दिया और कहा –
“प्रभु! तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए। मैं आपके चरणों में स्वयं को समर्पित करता हूँ।”
भगवान ने प्रसन्न होकर तीसरा पग बलि के सिर पर रखा और उसे पाताल लोक भेज दिया।
बलि को मिला वरदान
यद्यपि भगवान विष्णु ने बलि को पाताल लोक भेजा, लेकिन उनकी दानशीलता, वचनबद्धता और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान भी दिया –
- बलि को सुतल लोक का स्वामी बना दिया।
- यह वचन दिया कि हर वर्ष ओणम पर्व पर वे स्वयं बलि से मिलने जाएंगे।
- बलि को अमर कीर्ति मिली और वे आज भी “महादानी” के रूप में पूजे जाते हैं।
वामन अवतार का धार्मिक और दार्शनिक महत्व
- धर्म की स्थापना – इस अवतार के माध्यम से देवताओं को स्वर्गलोक वापस मिला और धर्म की पुनर्स्थापना हुई।
- अहंकार पर नियंत्रण – बलि जैसे दानवीर भी जब शक्ति और साम्राज्य में डूबे, तो उन्हें विनम्रता का पाठ सीखना पड़ा।
- भक्ति और दान का आदर्श – बलि आज भी दानवीरता और भक्ति का प्रतीक माने जाते हैं।
- ईश्वर का विनम्र रूप – वामन का छोटा बौना स्वरूप इस बात का संदेश देता है कि ईश्वर अपने भक्तों के लिए किसी भी रूप में अवतरित हो सकते हैं।
- ओणम पर्व का महत्व – केरल में आज भी ओणम पर्व मनाया जाता है, जो राजा बलि की स्मृति और वामन अवतार से जुड़ा हुआ है।
निष्कर्ष
भगवान विष्णु का वामन अवतार केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह जीवन के गहरे सत्य को प्रकट करता है। यह अवतार हमें सिखाता है कि –
शक्ति और संपत्ति अहंकार का कारण नहीं बननी चाहिए।
दान और भक्ति मनुष्य को महान बनाते हैं।
धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर स्वयं अवतरित होते हैं।
वामन अवतार की यह कथा हमें यह प्रेरणा देती है कि विनम्रता, सत्य और धर्म का पालन ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।