एक गांव में एक धनी व्यक्ति रहता था जिसके पास बहुत सारी संपत्ति थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह भगवान कुंज बिहारी की सेवा करते थे तो उन्होंने अपनी संपत्ति से कुंज बिहारी का मंदिर बनवा दिया। उनकी कोई संतान नहीं थी इसलिए वह कुंज बिहारी जी को ही अपना पुत्र मानते थे। एक माता-पिता जिस तरह अपने पुत्र का ध्यान रखते हैं उसी प्रकार सेठ जी और उनकी पत्नी, कुंज बिहारी जी की सेवा करते थे। उनकी इतनी सारी संपत्ति होने पर भी उन्हें अहंकार नहीं था वह गांव के सभी बच्चों को अपना मानते थे सभी बच्चों को खुश रखते थे सभी बच्चे उनके पास आकर खेलते थे। सारा गाँव उनसे बहुत प्रेम करता था।
एक दिन गांव वालों ने सेठ जी से कहा सेठ जी आपकी तो कोई संतान नहीं है और आपकी इतनी सारी संपत्ति है तो आप किसी बच्चे को गोद ले लीजिए जिससे बाद में आपकी सारी संपत्ति पर उसका हक हो। सेठ जी ने हंस कर कहा – अरे! मुझे गोद लेने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मेरे पुत्र तो स्वयं कुंज बिहारी है इस संसार से मेरे जाने के बाद मेरी सारी संपत्ति अपने कुंज बिहारी जी के नाम कर दूंगा। तभी किसी आदमी ने कहा आप कुंज बिहारी जी को अपना पुत्र मानते हैं लेकिन क्या यह आपके मरने के बाद दाह संस्कार करने आएंगे, जैसे एक पुत्र अपने पिता का करता है। सेठ जी चुप हो गए और कुंज बिहारी जी की ओर देखने लगे, उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने सारे गांव वालों को जवाब दिया- हां, ठाकुर जी मेरे पुत्र है और मेरे मरने के बाद मेरा दाह संस्कार स्वयं ठाकुर जी ही करेंगे, उस समय यह देखने के लिए मैं जीवित तो नहीं रहूंगा लेकिन आप सभी लोग देखना मेरा दाह संस्कार मेरा पुत्र ही करेगा।
अब इस बात को वर्षो बीत गए किसी को याद भी नहीं थी। और सेठ जी अब बूढ़े हो गये थे। सेठ जी की पत्नी तो पहले ही परलोक सिधार गई थी। कुछ समय बाद सेठ जी का भी निर्धन हो गया। जब ये बात पुरे गाँव को पता चली तो पूरा गाँव उनकी अंतिम यात्रा पर एकत्रित हो गया उनमें छोटे – छोटे बच्चे भी थे जो चिल्ला चिल्ला कर सेठ जी के लिए रो रहे थे। कोई ये बोल कर रोता की, अब कौन हमारे साथ खेलेगा, कोई बोलता अब कौन हमें दूध पिलाएगा, कोई बोलता कौन हमें आपके जैसे प्यार से भोजन खिलाएगा। सभी अपना-अपना दुख दर्द रो-रो कर प्रकट कर रहे थे। तभी गाँव वालो ने सोचा सेठ जी की तो कोई संतान नहीं है और गाँव के सारे बच्चों को सेठ जी बहुत प्यार करते थे इसलिए इन्ही के हाथो से दाह संस्कार की सारी विधि करवाना सही होगा। उन्होंने सोचा ही था तभी एक छोटा सा बालक रोते हुए आगे आया और बोला – मैं सेठ जी का दाह संस्कार करूँगा। गाँव वालो ने उसके हाथो ही सेठ जी का दाह संस्कार करवाया इसके पश्चात सभी बच्चों ने अपने सर मुंडवाया और सभी स्नान करने के लिए नदी में गये। अब सभी लोग और सारे बच्चे नदी से स्नान करके वापस आ गये थे लेकिन वह बालक वापस नहीं लोटा। सभी ने उस बालक को बहुत ढूँढा, किसी ने सोचा नदी में डूब गया हो तो पूरी नदी में भी छान मारा लेकिन उस बालक का कही भी पता नहीं चला। तभी गाँव के किसी बूढ़े आदमी को वर्षो पुरानी सेठ जी कही हुई बात याद आई जिसमे उन्होंने कहा था कि कुंज बिहारी ही मेरे पुत्र है और वही मेरा दाह संस्कार की सारी विधि पूरी करने आयंगे। तो उस आदमी ने गाँव वालों को सारी बात बताई और बोला की चलो चलकर देखो तो कुंज बिहारी जी मंदिर में है की नहीं।
जैसे ही सारे गाँव वाले मंदिर पहुचे तो देखते है की कुंज बिहारी जी मंदिर में है लेकिन उनके सारे वस्त्र पानी से भीगे हुए थे। सभी को समझ आ गया की वह बालक स्वयं कुंज बिहारी जी थे। जो अपने पिता का अंतिम संस्कार करने आये थे।
भगवान प्रेम के भूखे होते है। इसलिए भगवान से प्रेम उसी प्रकार होना चाहिए जैसे हम अपने परिवार से करते है। भगवान को जिस भी रूप में अपना मानो, वह उसी रूप में आपको भी प्यार करते है। जैसे सेठ जी ने उन्हें पुत्र माना तो भगवान ने भी उन्हें अपना पिता माना और एक पुत्र की सारी जिम्मेदारी निभाई। और प्रेम के साथ होना चाहिए विश्वास। सेठ जी को कुंज बिहारी जी के ऊपर पूरा विश्वास था की भगवान उनके पुत्र बनकर आयंगे, उनका दाह संस्कार करेंगे। और वही हुआ। विश्वास होना बहुत जरुरी है।