पुसलार नयनार की कथा – भगवान शिव का अनोखा भक्त

हिंदू धर्म के इतिहास में 63 नयनार संतों का विशेष महत्व है। इन नयनारों ने अपने जीवन को भगवान शिव की भक्ति में समर्पित कर दिया। उन्हीं में से एक थे पुसलार नयनार (Pusalar Nayanar), जिनकी कथा बहुत अद्भुत और प्रेरणादायक है।

पुसलार नयनार कौन थे?

पुसलार नयनार तमिलनाडु के थिरुन्निन्रवूर गाँव में रहते थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे, लेकिन बहुत गरीब होने के कारण शिवजी के मंदिर का निर्माण नहीं करवा सकते थे। उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि वे भगवान शिव के लिए एक भव्य मंदिर बनाएं।

मंदिर का स्वप्न निर्माण

पुसलार नयनार ने अपने मन और ध्यान में ही एक अद्भुत मंदिर का निर्माण करना शुरू किया।

वे ध्यान में बैठते और एक-एक ईंट, दीवार, द्वार, गर्भगृह और गोपुरम की रचना अपने हृदय में करते।

कई वर्षों तक उन्होंने इस ध्यान-निर्माण में अपना मन लगाया।

अंत में उनके ध्यान में मंदिर पूर्ण हो गया और उन्होंने सोचा कि अब मंदिर का “कुंभाभिषेक” (प्राण प्रतिष्ठा) करना चाहिए।

राजा और भगवान शिव का आशीर्वाद

कांचीपुरम के राजा भी शिव भक्त थे। उसी समय राजा भी शिवजी के लिए एक वास्तविक भव्य मंदिर बना रहे थे। जब उसके उद्घाटन की तिथि आई तो सयोंगवश उसी दिन की थी जिस दिन की पुसलार नयनार ने भगवान शिव के मंदिर के उद्घाटन के लिए चुना था। तब भगवान शिव ने राजा के सपने में आकर कहा –
“राजन! पहले तुम थिरुन्निन्रवूर जाकर पुसलार नयनार के मंदिर का कुंभाभिषेक देखो, फिर अपना कार्य करना।”

राजा भगवान शिव के कहने पर थिरुन्निन्रवूर गये लेकिन वहां जाकर राजा आश्चर्यचकित हुए क्योंकि उन्हें वहाँ किसी मंदिर का ज्ञान नहीं था। जब वे वहाँ पहुँचे तो पाया कि बाहर कोई पत्थर का मंदिर नहीं है, बल्कि पुसलार नयनार अपने ध्यान में बैठे हुए है। पुसलार नयनार के ध्यान से उठने के बाद राजा ने उनसे मंदिर के पूछा और अपने सपने के बारे में बताया। तब पुसलार नयनार ने उन्हें बताया की मंदिर की स्थापना तो हो चुकी है और वह मंदिर मेरे ह्रदय में स्थित है।

राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और उनकी पूजा की। भगवान शिव भी पुसलार नयनार से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर पुसलार नयनार की भक्ति को स्वीकार किया।

शिक्षा और संदेश

भक्ति सिर्फ बाहरी कार्यों से नहीं, बल्कि सच्चे मन और श्रद्धा से होती है।

यदि साधन न हों, तब भी हृदय की भक्ति भगवान को स्वीकार्य होती है।

पुसलार नयनार की कथा हमें यह सिखाती है कि “ बाहरी दिखावा से ज्यादा सच्ची निष्ठा ही सबसे बड़ा मंदिर है।”

निष्कर्ष

पुसलार नयनार ने यह साबित कर दिया कि भक्ति के लिए धन, शक्ति या बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं होती। मन की एकाग्रता और प्रेम ही भगवान तक पहुँचने का सबसे सुंदर मार्ग है। इसलिए वे आज भी शिवभक्तों के बीच एक महान नयनार संत के रूप में पूजे जाते हैं।

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