क्या हुआ ? जब स्वयं नारायण और लक्ष्मी जी अपने एक भक्त के घर परीक्षा लेने पहुंचे।

एक बार लक्ष्मी जी विष्णु जी से कहने लगी प्रभु वैसे प्रथ्वी लोक में महिमा तो आपकी बहुत है लेकिन वोट करवायेंगे तो जीतेंगे तो हम ही। इस बात पर बिष्णु जी लक्ष्मी जी से कहते है- अच्छा! ऐसी बात है तो अभी देख लेते है, चलो तुम अपना प्रभाव दिखाओ हम अपना दिखाते है।

तब भगवान बिष्णु एक महान संत का रूप धारण कर नारायण – नारायण का जाप करते हुए, एक ग्रहस्थ के घर के गये। वह भगवान विष्णु की बहुत पूजा करता था। उसने जब नारायण – नारायण सुना तो वह संत के पास गया और उसने संत से अपने घर भोजन प्रसाद पाने की विनती करने लगा। उसने संत को घर के भीतर ले जाकर उनके लिए बैठने का आसन लगाया और संत के चरण पखारे, आरती की,भोजन प्रसाद बनवाया। और उन्हें प्रेम से प्रसाद पावाया। उसी गृहस्थ के घर लक्ष्मी जी भी एक वृद्ध औरत का रूप लेकर नारायण – नारायण का जाप करती हुई एक झोली टांगे हुए गई और बोली – बच्चा! भोजन पावाओगे। उस आदमी ने बोला- हाँ माता जी। माता ने कहा लेकिन बच्चा हम अपने पात्र में भोजन पाते हैं। तो उस आदमी ने कहा – माता जैसी आपकी इक्छा। अब माता ने अपनी झोली से एक सोने की थाल, कटोरी, गिलास, लोटा जल का निकाल कर कहती है – बेटा! इसमें भोजन प्रसाद डाल दे। उस आदमी की आँख फटी की फटी रह गयी। भोजन प्रसाद पावाने के बाद वह आदमी माता से पूछता है – माता ! अब थाली आप ही धोएंगे या हम धो दे। माता ने कहा – बच्चा! धोने की जरूरत नही है। हम एक बार जिस पात्र में भोजन करते है, दोबारा उस पात्र में भोजन नहीं करते। तो अब ये सब तुम्हारे है। वह आदमी बहुत खुश हुआ और बोला – अरे माता! आप तो साक्षात् देवी हो। माता बोली – अच्छा बच्चा! अब हम चलते है। तो वह आदमी बोला – नही माता! आप तो दो – चार दिन और रुको । तो माता बोली – नही बेटा! जहाँ संत होते है वहाँ हम थोड़ा कम ही जाते है। वह आदमी ने सोचा माता रूकेंगी तो दिन में चार बार तो भोजन पाएंगी और फिर सोने के बर्तन देंगी तो वह संत से बोला – बाबा!अब आप अपनी झोली उठाओं और यहाँ से जाओं। संत बोले – बेटा! आज रात्रि तो रुकने दो । वह आदमी बोला – नहीं बाबा! माता रुकेंगी इसलिए आप यहाँ से चले जाइये।

माता लक्ष्मी मुस्कुराकर नारायण से बोली – अब बताओ, जा रहे हो या धक्का लगवाऊं। नारायण वहाँ से चले गए और उनके पीछे – पीछे माता लक्ष्मी भी आ गई।

जहाँ भगवान नारायण का स्थान नहीं होता वहाँ लक्ष्मी भी नहीं होती है।

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