कैसे एक भोले भक्त के बुलाने पर पूरा राम दरबार सेवा करने आ गया। अढ़ैया भक्त की कथा।

एक अढ़ैया नाम का व्यक्ति था। जो दिन में ढाई किलो आटे की ही रोटी खाता था। उसके माता पिता का देहांत हो गया था। तो वह उसके रिश्तेदारों के यहाँ रहता था लेकिन उसको रोज ढाई किलो की रोटी बनाकर कौन खिलता इसलिए उसके रिश्तेदारों ने भी उसको घर से निकाल दिया। अब उसके रहने का कोई स्थान नहीं था। अढ़ैया भूखे प्यासे दिनभर भटकता रहा। गाँव के कुछ दुरी पर उसे संतो का आश्रम मिला वहां भंडारा चल रहा था। अढ़ैया ने भंडारे में जो कुछ मिला वह खा लिया। वहां उसकी संतो से भेट हुई, उसने संत से पूछा – यहाँ प्रतिदिन भंडारा होता है क्या? संत ने कहा – हाँ, यहाँ प्रतिदिन भंडारा होता है। अढ़ैया ने सोचा यहाँ तो प्रतिदिन भंडारा होता है यहाँ मेरे भोजन खाने पर किसी को कोई परेशानी नहीं होगी, उसने फिर संत से कहा – गुरूजी! मुझे इस आश्रम में रख लो और मुझे करने को कोई सेवा दे दो। संत बोले – अच्छा, तुम्हारा नाम क्या है। अढ़ैया बोला – गुरूजी! मेरा नाम अढ़ैया है। संत बोले – ‘अढ़ैया’, ये कैसा नाम है । अढ़ैया बोला – गुरुजी! हमारे गाँव वालो ने रखा है, मैं दिन में ढ़ाई किलों आटे की रोटी खाता हूँ, वो भी तोल कर। उसके बाद अलग से कुछ मिल जाये तो वो भी खा लेता हूँ । लेकिन प्रतिदिन ढ़ाई किलों तो पाता ही हूँ । इसलिए गॉंव वाले मुझे अढ़ैया नाम से बुलाते है। गुरूजी चौंककर बोले – क्या, ढाई किलो। अढ़ैया बोला – जी गुरुजी! ढ़ाई किलो पाते है तभी हमारी भूख मिटती है। गुरु जी बोले – अच्छा, यहाँ तो भंडारा चलता ही रहता है तो तुम ढाई किलो पाओ या पांच किलो पाओ। हमें कोई परेशानी नहीं है। तो बताओ क्या काम कर सकते हो? अढ़ैया बोला – गुरूजी! आप जो सेवा बोलोगे हम वो करेंगे। गुरूजी बोले – अढ़ैया! तुम आश्रम की गाय चराओ और हम तुम्हे प्रतिदिन ढाई किलो आटा दे देंगे तुम वही जंगल में बनाना और पाना, क्योंकि अलग से तुम्हारे लिए ढाई किलो आटे की रोटी अढ़ैया बोला – ठीक है, गुरूजी। गुरूजी बोले – सुनो भाई! हमारा वैष्णव सिद्धांत है तो हमारे ठाकुर जी को भोग लगाये बिना हम पाते नहीं है, तो तुम भोजन बनाना और पहले ठाकुर जी को भोग लगाना उसके बाद भोजन पाना।बिना भोग लगाये खाने का विधान हमारे आश्रम से तुम्हारा नहीं बन सकता। अढ़ैया बोला – गुरूजी! हमें तो भोग लगाना आता नहीं है। क्या भोग लगाये। गुरूजी बोले – देखो भाई! तुम्हे जो भी सामान चाहिए यहाँ से ले जाओ और ढाई किलो आटा भी ले जाओ और जंगल में गाय चराओ, लकड़ी बीनो और भोजन बनाओ, ठाकुर जी को पवाओ और स्वयं पाओ।जितना मन हो उतना पाओ पर पहले ठाकुर जी को पवाओ।

अब अढ़ैया का पहला दिन, आश्रम से सामान ले गया। जंगल में गाय के उपले बिनकर, उसमें बाटी बनाया और आलू का भरता बनाया। अब भोजन तैयार करके बैठ गया और और हाथ जोड़, नेत्र बंद करके बोलने लगा – गुरुदेव के ठाकुर आओ, भोग लगाओ। उसके बुलाने पर प्रभु श्री राम आ गये। अढ़ैया धीरे से अपने एक नेत्र खोलकर देखता है तो सामने धनुरधारी श्री राम खड़े है। अब अढ़ैया बोलता है – कौन हो आप? श्री राम कहते है – हमारा नाम राम है, तुम्ही ने तो हमें बुलाया। तुम बोल रहे थे गुरुदेव के ठाकुर आओ, तो हम तुम्हारे गुरुदेव के ठाकुर है इसलिए हम आ गये। अढ़ैया कहता है – तुम सही में आते हो क्या? श्री राम बोलते है – हाँ, हम आ तो गये देखो। और अब हम भोग भी पायंगे। तुमने बाटी और आलू का भरता बनाया है, बहुत खुशबू आ रही है। तब अढ़ैया पूछता है – आप पाते भी हो। गुरुदेव ने तो बोला था की भोग लगाना फिर तुम पाना। श्री राम मुस्कुराते हुए अढ़ैया से कहते है – हम पाते है लेकिन सबका भोग नहीं पाते वो तो तुम जैसे कुछ ही भक्त होते है उन्ही का भोग पाते है हम। तो अढ़ैया कहता है – अब आप आ गये हो तो आप तो हमको ऐसे ही रखोगे। तो श्री राम कहते है – जब तुम ढाई किलो पा सकते हो हम भी ढाई मन पा सकते है। अढ़ैया – हमको पता नहीं था की गुरुदेव के ठाकुर जी इतने भूखे रहते है। पर आप अलग पत्तल में ले लो, हम आपको अपने पत्तल में तो पाने नहीं देंगे। श्री राम – अरे! भोग कोई ऐसे थोड़ी ना लगाया जाता है की तुम अपना लोगे और हम अपना ले। तुम अपनी आँख बंद करके बैठो जैसे तुम्हारे गुरूजी आँख बंद करके हमें भोग लगाते है। अढ़ैया आँख बंद करके बैठ गया उसने सोचा एक बाटी खायंगे। जब अढ़ैया आँख खोलकर देखता है तो भगवान पूरा खा गये।उसने प्रभु से कहा – आप आज हमें भूखा रखोगे। भगवान कहते है – तुम्हे पता है तुम्हारे गुरूजी ने आज तुम्हे क्यों भोग लगाने को क्यों कहा, क्योंकि आज एकादशी है। इसलिए तुम्हारे गुरूजी आश्रम में एकादशी मना रहे है और तुम्हे इसलिए आमानिया दिया है की तुम बाहर बना लो और अब तो रोज आमानिया देंगे। तो अढ़ैया पूछता है – तो क्या आप रोज आओगे हम बुलायेंगे तो। भगवान बोले – हाँ, रोज आयंगे, तुम बुलाओगे तो हम रोज आयंगे नहीं क्या। अढ़ैया बोला ठीक है। अब वह अपने गुरूजी के पास जाकर बोलता है – गुरुदेव! आपके ठाकुर जी आये थे और हमारी सारी बाटी खा गये, अब से पांच किलो ले जायेंगे। ढाई किलो हमारे लिए और ढाई किलो आपके ठाकुर जी के लिए।गुरूजी जी ने सोचा चलो भाई दे दो, इसको ज्यादा भूख लग रही होगी तभी बाते बना रहा है।

अब दूसरे दिन पांच किलो आटा और भरता के लिए दो लोगो के हिसाब से आलू लेकर गया। जंगल पहुंचा गाय छोड़ दी चरने के लिए, उपले बीने और भोजन बनाया और हाथ जोड़, आँख बंद करके बोला – गुरुदेव के ठाकुर पधारो। जैसे ही आँख खोल के देखा राम जी के साथ में सीता जी। अढ़ैया ने कहा यह कौन है? राम जी ने कहा यह हमारी अर्धांगिनी है। उसने फिर पूछा- तो कल आपने क्यों नहीं बताया कि आपकी अर्धांगिनी भी है और क्या यह भी पाती है। राम जी ने कहा – हां, और हमारे जैसे ही पाती हैं। सिया जी मुस्कुरा रही थी और कुछ बोल नहीं पाई। अब दोनों भोग पाने के लिए बैठ गए। राम जी सिया जी को बखान कर करके खा रहे है। अब अढ़ैया धीरे से आँख खोलकर देखता है, दोनों सारा पा गये। उसने सोचा पाँच किलो लेकर आया था जिसमें ढाई किलो मेरा और ढाई किलो इनका पर सारा पा गए। अब अढ़ैया गुरुदेव के पास जाता है और बोलता है – गुरुदेव! अब से साढे सात किलो। गुरुदेव बोले – क्यों ? अढ़ैया बताता है – गुरु जी! आपके ठाकुर की पत्नी भी है ना। गुरूजी – हाँ। अढ़ैया – वह भी आई थी ठाकुर जी के साथ हमारा सारा भोजन दोनों ने खा लिया इसलिए अब से साढ़े सात किलो।

अब तीसरे दिन भी भोजन तैयार करके नेत्र बंद करके बोला – गुरुदेव के ठाकुर पधारो। इस बार आँख खोल करके देखता है तो राम जी, सीता जी और साथ में लक्ष्मण जी। अढ़ैया पूछता है – अब ये कौन है? राम जी बताते है – यह मेरा छोटा भाई है लक्ष्मण। अढ़ैया – तो आपको बताना था ना की आपके छोटे भाई भी है, और परिवार में कितने लोग हो आप, पहले बता देते तो अच्छा होता। राम जी, सिया जी और लक्ष्मण जी को धीरे से कहते है – गुस्सा मत करना, बड़ा भोला भक्त है हमारा, चुपचाप भोग पा लो। अढ़ैया नेत्र बंद करके बैठ गया और सोच रहा है की आज भी कुछ खाने को नहीं बचेगा मेरे लिए। सबके जाने के बाद देखता है कुछ भी नहीं बचा, तो जो पत्तल में एक तिनका बचा, वही उठा के खा लिया। अब आश्रम पहुंच कर अढ़ैया अपने गुरुदेव को बताता है – गुरदेव! आपके ठाकुर जी के भाई भी है ना। गुरुदेव – हाँ, तो। अढ़ैया- गौर वर्ण के धनुषधारी थे। वो भी आये थे तो अब से दस किलो आमानिया ले जाऊंगा। किसी को भी उस पर विश्वास नहीं हो रहा था। गुरुदेव ने अपने शिष्यों से कहा दे दो जितना मांग रहा है, क्या ही करेगा, गाय को खिलायेगा, दे दो।

अब चौथे दिन भोजन तैयार करके फिर नेत्र बंद करके बोला गुरुदेव के ठाकुर पधारो, और मन में सोच रहा है इस बार संख्या ना बढ़ जाये। जैसे ही आँख खोला तो राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी और साथ में हनुमान जी। अढ़ैया फिर पूछता है – अब ये कौन है? राम जी – ये हमारा प्रिय सेवक है। अढ़ैया – आप मुझे एक पर्चा बनाकर दे दो उसमें आपके परिवार वालो का नाम, आपके सेवकों का नाम सब लिख दो, मैं उस पर्चे को गुरुदेव को दे दूंगा। हर बार संख्या बढ़ जाती है इसलिए बोल रहा हूँ। राम जी मुस्कुराते हुए हनुमान जी से कहते है कुछ बोलना मत बड़ा निराला भक्त है हमारा। अब राम जी और सीता जी भोग पाये उसके बाद लक्ष्मण जी ने पाया फिर जितना बचा हनुमान जी सब खा गये। अब आश्रम में जाके अढ़ैया अपने गुरूजी से कहता है – गुरुदेव! पांच किलो और ज्यादा देना अब से, हर बार संख्या बढ़ती जाती है। पहले आपके ठाकुर जी आये फिर ठकुराइन जी आई, फिर उनके भाई आये और आज तो बहुत भयानक रूप, गदा लिए हुए लाल अरुण वर्ण शरीर का प्रकट हो रहा है, आपके ठाकुर जी के सेवक थे, वो भी आये थे। गुरुदेव सोचते है क्या सही में इसको भगवान दर्शन दे रहे है, अब अगली बार बोलेगा तो इसकी परीक्षा लेंगे।

अगले दिन पंद्रह किलो लेकर गया सब बनाया और आँख बंद करके बोला आओ गुरुदेव के ठाकुर। अब आँख खोला तो साथ में भरत और शत्रुधन थे। अढ़ैया बोला अब ये लोग कौन है? राम जी – यह दोनों भी हमारे छोटे भाई है इनका नाम भरत है और इनका शत्रुधन। अढ़ैया – तो पहले बताना था ना आपको की और भी भाई है आपके, बोला था आपको, हम गुरूजी को बोल देते। अब पाओ आप लोग। दो संख्या बढ़ गई तो इस बार भी कुछ नहीं बचा। आश्रम जाके गुरूजी से कहता है – गुरुदेव! अब आप बीस किलो की बोरी में भर दीजिये दिनभर बनायंगे क्योंकि आपके ठाकुर जी का पूरा परिवार आता है।

इस बार बीस किलो लेकर गया लेकिन कुछ बनाया नहीं और आँख बंद करके बुलाने लगा, गुरुदेव के ठाकुर आओ। प्रभु आये और बोले – क्या हुआ आज कुछ बनाया नहीं कोई खुशबू नहीं आ रही है ना बाटी की ना भरते की। अढ़ैया मुस्कुराते हुए बोला – प्रभु! आपके साथ आपकी पत्नी भी है ना और सेवक भी है। तो बनाओ, इतने दिन से हमारे हाथ का पाये है अब हम पाना चाहते है। जैसा चाहे वैसा बनाओ आपकी रूचि के हिसाब से। राम जी मुस्कुराते हुए सिया जी ओर देखते है। सिया जी कहती है – प्रभु! भोजन तो हम बना देंगे पर उपले और लकड़ी की व्यवस्था करना हम से नहीं हो पायेगा। राम जी ने हनुमान जी से कहा – जाओ उपले और लकड़ी लेकर आओ भक्त का आदेश है भोजन बनाना पड़ेगा। राम जी ने सब को काम बता दिया। अढ़ैया ने कहा – आप लोग बनाओ हम गाय एकत्रित करके आ रहे है। और वहां से सीधा भागा आश्रम की ओर वहां जाकर बोलता है – गुरूजी! आज हमने आपके ठाकुर जी को फसा लिया। गुरुदेव – फसा लिया, कैसे फसा लिया। अढ़ैया – आपके ठाकुर जी के पुरे परिवार को भोजन बनाने में लगा दिया है, आपको हम पर शंका होती थी तो चलो, आज उनके हाथ का भोजन पायंगे। गुरुदेव ने सोचा ये तो पागल है गवार है इसको सही से नाम जाप करना नहीं आता इसके लिए भगवान स्वयं भोजन बनायंगे यह हो ही नहीं सकता लेकिन भगवान बहुत दयालु है उन पर प्रश्न नहीं कर सकता, वो आ भी सकते है, चलकर देखना चाहिए। अब जैसे ही गुरुदेव जंगल पहुँचे तो देखते है पूरा राम दरबार सामने उपस्थित है। और सीता मईया स्वयं स्वादिष्ट भोजन बना रही है। गुरुदेव भागकर गये और प्रभु को दंडवत प्रणाम किया। गुरदेव ने प्रभु से पूछा – प्रभु! आपकी लीला समझ नहीं आयी। प्रभु राम कहते है – देखो, जो ज्ञानी भक्त है उनके द्वारा में अत्यंत तर्क में भी, मै पकड़ में नहीं आता, और जो विद्वान है उनकी विद्या मुझे छू नहीं सकती लेकिन जो दीन है जो भोले है उनके सामने आने से में खुद को रोक नहीं पाता हूँ, ना अपनी दिव्यता, ना महानता दिखता हूँ, देखो तुम्हारे इस भक्त की आज्ञा पर हमारा सारा परिवार लगा हुआ है सेवा में। आज तुम्हे तुम्हारे इस भक्त की वजह से तुम्हे यह सौभाग्य मिला। अब बैठो और भोजन पाओ। प्रभु ने दोनों को भोजन पावाया। फिर स्वयं पाया और बाद में फिर सभी ने पाया।

इस तरह एक भोले भक्त के बुलाने पर भगवान दौड़े चले आते है और उनकी सेवा भी करने लग जाते है।

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