एक बार एक गोवर्धन नाम का डाकू था जिसने कभी भगवान की चर्चा नहीं सुनी कभी राम नाम नहीं सुना, कभी कृष्ण नाम कभी नहीं सुना। लेकिन उसने पिछले जन्म के कुछ पुण्य कर्म कर रखे होंगे जो इस जन्म में उसका भगवत नाम गोवर्धन पड़ा। वह डाकू था उसने चोरी किया था इसलिए उसके पीछे राज्य सिपाही पड़े हुए थे। कहीं पास में सत्संग चल रहा था, हजारों की भीड़ थी। तो गोवर्धन डाकू ने सोचा कि मैं इस भीड़ में जाकर मिल जाऊं तो राज्य सिपाही मुझे ढूंढ नहीं पाएंगे। वह सत्संग में जाकर लोगों के बीच बैठ गया और सत्संग सुनने लगा। उस सत्संग के व्यासधीश परशुराम जी थे, जो महान ज्ञानी थे। वह सत्संग भगवत प्राप्ति के लिए करते थे।
व्यास परशुराम जी श्री कृष्ण के श्रंगार का वर्णन सुना रहे थे, जब वह बार गौ चराने जा रहे थे और मां यशोदा ने उनको किस तरह तैयार किया। व्यास जी कहते हैं की “मां यशोदा ने अपने लाला को पीताम्बरी वस्त्र पहनाकर सोने का हीरा जड़ित छोटा – सा मुकुट पहनाया, सोने और हीरे के गले में हार, कानो में कुण्डल, हाथो में बाजुबंध, कमर में करधन पैरो में सोने की पायल पहनाई, और हाथ में एक छोटी सी छड़ी दी वह भी सोने की थी इस तरह वह अपने पुत्र को प्रथम बार गौ चराने के लिए श्रंगार करती हैं।”
यह सब कथा गोवर्धन बड़े ध्यान से सुन रहा था। उसने कभी भगवत नाम की चर्चा सुनी ही नहीं थी इसलिए वह विचार करने लगा कि यह बालक सच में है जिसकी चर्चा हो रही है और यह गौ चराने इतने सारे सोने के आभूषण पहनकर जाता है, अगर एक बार यह बालक मुझे मिल जाये तो इसके सारे आभूषण लूट कर ले जाऊंगा। इतने धनी बालक को लुटूंगा तो मै धनी हो जाऊंगा।
जब कथा समाप्त हुई तो गोवर्धन मंच पर व्यास जी से मिलने गया और बोला – व्यास जी! मैं आपको अपना परिचय देना चाहता हूँ, आप मेरे से डरना मत। मेरा नाम गोवर्धन डाकू है। परशुराम जी ने कहा – अच्छी बात है भाई। बहुत अच्छा नाम है तुम्हारा। बताओ हमसे आपका क्या काम। गोवर्धन बोला – मुझे आप उस धनी बालक का पता बताओ जिसके बारे में आप बता रहे थे, मै उसको लुटूंगा।
व्यास जी ने मन में कहा – हे भगवान! इस व्यक्ति पर तो आपकी कृपा हो गई, यह तो आपको ही लूटने चला। ऐसा मन में सोचकर व्यास जी बोले – भाई! आप क्या, बड़े -सा -बड़ा चोर, डाकू भी उन्हें नहीं लूट सकता। किसी में इतनी ताकत नहीं की उन्हें लूट सके।गोवर्धन बोला – आप मुझे जानते नहीं हो, मैं थोड़ा जिद्दी डाकू हूँ, एक बार जो मन में ठान ले तो उसे पूरा करके ही मानता हूँ। आज मैं आपके सामने कसम खाता हूँ की जब तक मुझे यह बालक नहीं मिलेगा, मैं अन्न, जल ग्रहण नहीं करूंगा आप मुझे इसका पता बता दीजिए यह बालक मुझे कहा मिलेगा। गोवर्धन की इस प्रकार बाते सुन कर व्यास जी को बहुत आनंद आया और भगवान से कहते है – ‘भगवान! सब आपकी माया है यह आपको ढूढ़ने के लिए अन्न, जल का त्याग करने को तैयार है, इसे ये ज्ञात भी नहीं की इस पर आपकी कितनी बड़ी कृपा हो गई जो आप को ढूढ़ने का विचार इसके मन में आया’। फिर व्यास जी गोवर्धन से बोले – भाई! सुनो, यह बालक वृंदावन में गौ चराता है इसका नाम कृष्ण है। और यह दिखते दस वर्ष के बालक है लेकिन इनकी प्रवीणता इतनी बड़ी है की ये किसी के बहलाने – फुसलाने से जल्दी फिसलते नहीं, ना ही किसी के डराने धमकाने से डरने वाले भी नहीं है। लेकिन तुमने ठान लिया है इनको लूटने का इसलिए हमें लगता है की तुम इन्हे लूट सकते हो। क्योंकि जो ठान ले, निश्चय कर ले की इन्हे ढूढ़ना है तो इनको ढूढ़ना इतना कठिन नहीं, ये फिर सहजता से तुम्हे मिल जायेंगे। गोबर्धन बोला – अच्छा है फिर तो मैं इन्हे ढूंढ़कर ही अन्न ग्रहण करूंगा पर मुझे इनका सहज सरल नाम बता दीजिये जिससे मैं नाम याद रख सकू। परशुराम व्यास जी बोले – इनके तो अनेक नाम है पर सहज़ सरल नाम इनका श्यामसुन्दर है। और तुम्हे याद रखना है तो वृंदावन में श्याम सुन्दर बोल कर याद रखो। अब गोवर्धन जैसे ही व्यास जी के पास से जाने लगा तो व्यास जी ने उसे रोक कर कहा- सुनो, भाई! एक आखरी उपाय बता देते हैं हमारे घर में ठाकुर जी हैं उनको हम माखन मिश्री भोग लगाते हैं और यह माखन मिश्री उस बालक को बहुत पसंद है तो जब तुम तुम्हारी चतुराई से उसे लूट न सको तो उसे प्यार से माखन मिश्री देकर उन्हें लूट सकते हो। गोवर्धन ने कहा – अच्छा, तो दे दीजिये, मैं माखन मिश्री भी लेकर जाऊंगा। गोवर्धन अब नाम याद रखने के लिए ” वृंदावन में श्याम सुन्दर, वृंदावन में श्याम सुन्दर ” बोलते हुए वृंदावन की ओर चल दिया, और मन में श्याम सुन्दर का स्मरण करके उनके सोने के आभूषण के बारे में सोचता रहा। अब गोवर्धन वृंदावन पंहुचा तो गौ चराने के सारे स्थान देख लिए हर झाड़ी, लताये के आस -पास देख लिए उसे गौ तो दिखाई देती पर वैसा कोई बालक नहीं दिखाई देता जैसा व्यास जी ने बताया था, उसे जो भी रास्ते में मिलता उससे पूछने लगता की भाई! यहाँ श्याम सुन्दर गौ कहाँ चराते है। किसी को समझ नहीं आ रहा था की गोवर्धन किस बालक की बात कर रहा है, सभी उसे मना कर देते और कहते की भाई! हम तो ऐसे किसी बालक को नहीं जानते। पूरा दिन बीत गया था लेकिन गोबर्धन को अभी भी श्याम सुंदर का पता नहीं मिला वह भूखे प्यासे दिन भर ढूंढता रहा, तब उसे एक आदमी मिला जिससे गोवर्धन ने पूछा- भाई! श्याम सुंदर गौ कहाँ चराते है। उस आदमी ने सोचा की किसी गौ चराने वाले बालक को ढूंढ रहा है वह तो जंगल में ही मिलेगा। उस आदमी ने गोबर्धन से कहा – भाई! यह बालक तो आपको गाँव के जंगल में मिलेगा। उस आदमी की बात मानकर गोवर्धन जंगल में गया और ‘श्याम सुन्दर, श्याम सुन्दर ‘ कह कर पुकारने लगा।
गोवर्धन भगवत मार्ग से भटका हुआ था लेकिन सत्संग की कथा ने उसे ऐसा मार्ग दिखाया की वो भगवान को ढूढ़ने के लिए उसका दृढ संकल्प और भूखे प्यासे रहकर भगवान के नाम और वृदांवन का स्मरण से उसने भगवान को रिझा लिया। जब वह जंगल में श्यामसुन्दर बोल कर भगवान को पुकार रहा था तब भगवान ने उसे दर्शन दिए ।
गोवर्धन को दिखता है कि आसपास बहुत सारी गाय चर रही हैं और उनके पास बालकों का झुंड खेल रहा है उन बालकों के झुंड में बीचो-बीच एक बालक है जो वैसे ही दिखता है जैसे व्यास जी ने परिचय दिया था। गोवर्धन ने जैसे ही उस बालक को देखा तो सोचने लगा इतना कोमल इतना छोटा सा बालक है इसे लूटना तो बहुत आसान है, वह जोर से श्याम सुंदर कहकर पुकारने लगा। भगवान ने गोवर्धन की ओर मुड़कर देखा और अपने साखाओं से कहा – तुम लोग खेलो मैं अभी आता हूं, कोई मुझे ढूंढने बड़ी दूर से आया है, मैं उनसे मिलकर आता हूं। अब भगवान गोवर्धन के पास गए और कहा – बताओ मुझे क्यों पुकार रहे थे। गोवर्धन ने कहा – ये बालाक! जल्दी अपने सारे आभूषण उतार कर मुझे दे दो। भगवान कहते हैं – मैं क्यों तुम्हें अपने आभूषण दूं? गोवर्धन ने कहा – तुम मुझे जानते नहीं हो मैं कौन हूं? मेरा नाम गोवर्धन है। भगवान कहते हैं- अच्छा, तो तुम गोवर्धन हो, तो हम गोवर्धन धारी हैं। गोवर्धन कहता है – ये बालक! थोड़ा इज्जत से बात करो। तुम्हें मुझे देखकर भय नहीं लगता मैं एक चोर हूं। भगवान हंसकर कहते है – अरे भाई! तुमसे बड़ा चोर तो मैं हूँ। मैं लोगों का चित्त चुराता हूं और सबको अपने वश में कर लेता हूं। गोबर्धन ने सोचा व्यास जी ने ठीक ही कहा था यह बालक तो बहुत ही प्रवीण है यह तो बहलाने फुसलाने से नहीं फिसल रहा है और इसको तो मेरे से भय भी नहीं है यह तो निडर खड़ा है। उसने सोचा अब व्यास जी के कहे अनुसार आखिरी उपाय करता हूं। उसने अपनी झोली से माखन मिश्री निकाला और बहुत प्यार से श्याम सुंदर से कहा – ये बालक! देखो मैने तुम्हारे लिए माखन मिश्री लाया है। इसे खा लो और अपने सारे आभूषण मुझे दे दो। भगवान ने जैसे ही माखन मिश्री देखा उन्होंने व्यास जी का दिया हुआ भगवत प्रसाद, जो उन्होंने बहुत प्यार से भेजा था, उसे गोवर्धन से ले लिया। और भगवान गोवर्धन से कहते हैं- तुमने मेरे लिए माखन मिश्री लाया है। मैं इसे खाऊंगा लेकिन तुमने भी कुछ भी खाया पिया नहीं है ना तो पहले तुम खाओ फिर मैं खा लूंगा। गोवर्धन कहता है – नहीं बालक, यह माखन मिश्री तुम खाओ और मुझे तुम अपने आभूषण दे दो। ठाकुर जी माखन मिश्री खा कर कहते हैं – अरे भाई! लो मैंने खा लिया अब तुम खा लो फिर मैं तुम्हें अपने सारे आभूषण दे दूंगा और चाहिए तो और भी दे दूंगा मेरी मैया के पास ऐसे बहुत सारे आभूषण है। अब जैसे ही गोवर्धन ने भगवान का दिया हुआ माखन मिश्री खाया तो गोवर्धन के अंतः करण खुल गए और उसे भगवत प्राप्ति हो गई उसके सारे मन के मालिन नष्ट हो गए। वह त्राहिमाम त्राहिमाम करके भगवान के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा। बोला – प्रभु! मुझे क्षमा करो मैं भटक गया था आप मेरे सामने थे लेकिन मैं आपको पहचान नहीं सका आपकी बहुत बड़ी कृपा हो गई जो आपने मुझे दर्शन दे दिए, मेरा जीवन धन्य हो गया, प्रभु। भगवान कहते हैं- तुम्हें मेरे आभूषण चाहिए थे ना ले लो। गोवर्धन क्षमा मांगते हुए कहता है- प्रभु! मुझे अब कुछ नहीं चाहिए मैं भटक गया था, आप मुझे मिल गए अब मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस आप मुझे क्षमा कर दीजिये और अपना और मुझे अपनी शरण में ले लीजिये। आपके अलावा और मुझे कुछ नहीं चाहिए। भगवान गोवर्धन को आशीर्वाद देकर वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
गोवर्धन डाकू था लेकिन उसका विश्वास, जो उसने व्यास जी पर किया, उसने एक बार भी संशय नहीं किया, और परशुराम जी की बात को सच मानकर भगवान को ढूंढने निकल गया और अन्न, जल त्याग कर दृढ संकल्प करके निश्चय कर लिया। और उसके चित्त में वृन्दावन और श्याम सुन्दर का स्मरण उसको भगवान तक पहुंचा दिया। भगवान को ढूढ़ने से भगवान भी मिल जाते है लेकिन विश्वास, दृढ संकल्प होना चाहिए। और भगवान के नाम का स्मरण, भगवान से मिलने का रास्ता दिखा देता है ।